हज़रत हूद अलैहि सलाम और क़ौमे आद-hazrat hood a.s history in hindi
हज़रत हूद अलैहि सलाम और क़ौमे आद-hazrat hood a.s history in hindi
अस्सलामु अलैकुम मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों आज हम जानेंगे हज़रत हूद अलैहिस्सलाम का वाक़्या हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को क़ौमे आद भी कहा जाता है क़ौमे आद अहकाफ नाम के एक बस्ती में आबाद थी अहकाफ अरबी में रेत के टीलों को कहते हैं और ये इलाका समुन्दर के किनारे पर था।
अल्लाह तआला ने हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को आद क़ौम के लोगों के लिए नबी बनाकर भेजा। वह कौम लम्बे कद, चौड़े जिस्म और ताकतों वाली थी। सबसे लम्बा उसमें सौ गज़ का और गुठना साठ गज का था।वो लोग पत्थरों को काट कर पहाड़ों में मकान बनाते थे और अपनी पत्थरदिली की वजह से बुतों पर ईमान लाते थे। इनमें सिर्फ एक गिरोह था जो हजरत हूद अलैहिस्सलाम पर ईमान लाया था, लेकिन वो गिरोह भी मुखालिफों के डर से अपना ईमान छिपाता था।
जब हूद अलैहिस्सलाम की नसीहतें हद से ज्यादा हुईं, तब सब मुखालिफ़ीन तक्लीफ पहुँचाने के लिए तैयार हो गये मुसलमानों ने हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को इस बात की इत्तिला की हज़रत हूद ने अल्लाह से उनके लिए बद-दुआ की बारिश रुक गई, नतीजा यह हुआ कि बाग व खेतियाँ सूखने लगीं। अकाल की सूरत पैदा हो गई, सात वर्ष तक यह सिलसिला रहा। लोग मारे भूख और प्यास के परेशान हो गये।
हज़रत हूद अलैहिस्सलाम ने बड़ी मुहब्बत से कहा कि ईमान लाओ और अपने आपको दोज़ख की आग से बचाओ। यह सब आफ़तें कुफ्र की वजह से तुम सब पर आयी हैं जिसकी असल वजह खुदा का इन्कार और उसकी इबादत न करना है। कुफ्र करने वालों की शामत ही थी कि उन्होंने इन बातों को झूठा जाना और अपने कुफ्र पर जमे रहे और हज़रत हूद अलैहिस्सलाम के साथ बे-अदबी से पेश आते रहे।
वो लोग यही कहते थे कि ऐ हूद! हम तेरे कहने से अपने बुतों को न छोड़ेंगे और अपने धर्म से मुँह नहीं मोड़ेंगे। उस ज़माने में रस्म थी कि जिन पर बड़ी कठिनाई आती या सामने बड़ी मुहिम होती, तो मक्का के हरम में जाकर अल्लाह से दुआ करते थे और दुआ उनकी कुबूल होती थी। उन दिनों मक्का में आद कौम के अलावा अमालका कौम रहती थी। इस कौम को मक्का की सरदारी हासिल थी।
जब कौमे आद के लोग इन मुसीबतों के शिकार हुवे तो सरदारों में से सत्तर आदमी वहां जाने को तैयार हुए। पूरी कौम ने उनको यह नसीहत की कि मक्का में जाकर बारिश की दुआ मांगें। जब यह सब मंजिलें पूरी करके मक्का में पहुंचे और मुआविया बिन बकर के घर में उतरे। वह इन सब के खाने-पीने और राग-रंग की महफिलें सजाने में लग गया । यह लोग भूख-प्यास को भूल गये, कहां की दुआ और कैसी नमाज़ । वह तो सुनने लगे दिन-रात गाने बाजे।
मेजबान को मालूम था कि यह लोग दुआ करने आये हैं, लेकनि वह उन लोगों से इसलिए नहीं कहता था कि वह कहेंगे कि यह बड़ा कन्जूस है, खिलाने पिलाने से कतराता है। फिर अपनी कौम में जाकर मुझे बदनाम करेंगे आखिर उसने एक गज़ल बनायी और गाने वालियों को सिखा दिया। मज्मून उसका यह था कि तुम अपनी कौम की मुसीबत से गाफ़िल हो रहे हो और बारिश की दुआ मांगने में कोताही कर रहे हो। अब इन गाने वालियों ने यह गजल उनको सुनायी, उनको अपनी कौम की मुसीबत याददिलाई।
फिर वोलोग एक दूसरे को मलामत करने लगे और अपनी गफलत पर लानत भेजने लगे। जब होश आया तो फिर रात-दिन दुआ मांगना शुरू कर दिया। और अपनी कुर्बानियों को जिब्ह करने का तरीका इस्तेमाल किया। मर्सिद बिन मेदान उनमें एक शख्स था, जो छिपा हुआ मुसलमान था, वह हज़रत हूद अलैहिस्सलाम पर पूरा ईमान रखता था। वह इन लोगों से बोला, जब तक हज़रत हूद अलैहिस्सलाम पर ईमान नहीं लाओगे, तो अपना मक्सद कभी पूरा न होगा।
वो लोग समझ गये कि ये आदमी मुसलमान है। ऐसा ख्याल आते ही उन लोगों ने उस शख्स को अलग कर दिया और अल्लाह के दरबार में दुहाई की। इस मुद्दत में तीन टुकड़े बादल के सफेद, काले और लाल पैदा हुए और इस बादल में से यह आवाज़ आई कि इनमें से एक टुकड़ा अपना लो और इसके बाद अल्लाह के हुक़्म का इन्तिज़ार करो। लोगों ने सफेद व लाल बादल से मुंह मोड़ लिया और काले बादल पर निगाह जमायी कि यह बारिश करेगा।
आवाज़ आई कि तुमने काली राख वाला बादल अपनाया है, यह तुम्हारी कौम को नहीं छोड़ेगा और पूरी कौम को राख कर देगा। न बाप बचेगा, न बेटा, न जानवर बचेंगे न चिड़ियां। अल्लाह तआला ने इस काले बादल को आद पर रवाना किया और हूद अलैहिस्सलाम के मुखालिफों को इस आसमानी बला का निशाना बनाया। जब कौम वालों ने देखा कि काली बदली आई तो उन्होंने खुश होकर धूम मचाई कि इससे हमारी उम्मीदें हरी होंगी और हमारी तमन्नाएं पूरी होंगी।
लेकिन यह ख्याल उनका सही नहीं था इस बादल में अल्लाह का अज़ाब छिपा हुआ था। यह दुश्मन हज़रत हूद अलैहिस्सलाम का मजाक उड़ाया करते थे कि अगर तू सच्चा है तो हमें अल्लाह का अज़ाब दिखा। चुनांचे अल्लाह का यह अजाब आ ही गया। काले बादल की शक्ल में यह जबरस्त आंधी थी जो उन्हें तबाह करने के लिए आई थी। जब हज़रत हूद अलैहिस्सलाम ने देखा कि अल्लाह अब इस कौम को तबाह ही कर देगा और अज़ाब आ चुका है तो अल्लाह के हुक्म के मुताबिक चार हजार ईमान वालों को साथ लिया और बस्ती से बाहर निकल आए।
और थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा गोले आकार में लक़ीर खींची और ईमान वालों से बोले कि यह रेखा जो मैंने अपनी उंगली से गोल-गोल बनायी है और अल्लाह के हुक्म से तझको उसमें बिठाया है तो जो इसमें रहेगा इस अमान आंधी से बचा रहेगा।
कौम वाले भी इस मुसीबत को तमाशा समझ कर वहाँ जमा हुवे और अपने बाल-बच्चों को भी साथ लाए। इतने में आंधी के तेज़ झोंके चलने लगे यह झोंके इतने तेज़ थे कि उनके मर्दो औरतों और जानवरों को उड़ाना शुरू कर दिया, वो लोग कंकरियों की तरह इधर से उधर गिरने लगे, घायल होने लगे, जानें भी जाने लगीं। यह सूरत देख कर कौम के लोग घरों की तरफ भागे। लेकिन इस आंधी-तूफान में घर ही कहां बचे थे छतें उड़ गयीं, दीवारें गिर पड़ीं, जिस से बहुत से लोग दब-दब कर मर गये।
गरज यह कि उनमें से किसी की जान बच न सकी। वे सब दब-दब कर, टकरा-टकरा कर हलाक हो गये। सात दिन तक यह सिलसिला चलता रहा जब आंधी के झोंके रुके तो मालूम हुआ कि पूरी आबादी तलपट पड़ी है, सिर्फ वही लोग बचे थे, जो ईमान वाले थे, इसलिए कि आंधी उन तक आते-आते ठंडी हवा बन जाती थी। इस तरह कौमे आद अल्लाह के गजब की शिकार हुई, उनके आली शान मकान और हरे-भरे बाग सब तबाह हो गये।
हज़रत हूद अलैहिस्सलाम आँधियों के शांत होने के बाद अपने साथियों के साथ बाहर आये और नये सिरे से एक तरफ अपने मकान बना कर सब रनहे-सहने लगे। हज़रत हूद अलैहिस्सलाम जब चार सौ चौंसठ साल के हो गये, अल्लाह की तरफ से हुक़्म हुवा और मलकुल मौत ने उनकी रूह मुबारक को क़ब्ज़ कर लिया। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन।
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मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों उम्मीद करते हैं आपको हमारी ये पोस्ट-हज़रत हूद अलैहि सलाम और क़ौमे आद-hazrat hood a.s history in hindi पसंद आई होगी इसी तरह की और इस्लामी मालूमात हासिल करने की लिए bahareshariat.com को चेक करें
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