हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम का वाक़िआ-Hazrat saleh A.S story

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम का वाक़िआ-Hazrat saleh A.S story

अस्सलामु अलैकुम मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों आज हम हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम के बारे में जानेंगे हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम अल्लाह के एक अज़ीम पैग़म्बर थे अल्लाह तआला ने आपको समूद क़ौम के लोगों के लिए नबी बनाकर भेजा समूद क़ौम क़ौमे आद की नसल से थी क़ौमे आद का वाक़्या हमने आपको बताया है अगर आपने उसे नही पढ़ा तो उसका लिंक इस पोस्ट के नीचे आपको मिल जाएगा उसे भी ज़रूर पढ़े – हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम का वाक़िआ-Hazrat saleh A.S story

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम का वाक़िआ-Hazrat saleh A.S storyहज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम का वाक़िआ-Hazrat saleh A.S story

समूद एक ऐसी कौम थी जो बड़ी दौलतमन्द थी, और जायदाद वाली थी उस कौम के लोगों के पास जानवर -पैसा बहोत था, उस क़ौम के लोगों के पास  ऊंट और बकरियां बहोत ज़्यादा थी। जब आद कौम को तआला अल्लाह के हुक़्म से खत्म कर दी गई, उसके बाद उसी क़ौम की नस्ल से अल्लाह तआला ने एक नई क़ौम को पैदा किया जिसका नाम था समूद क़ौम, उस क़ौम ने नई-नई इमारतें बनाई। उन लोगो के पास माल और दौलत की भी ज्यादती हो गयी और यही ज्यादती उनकी गुमराही की वजह बनी उनमें घमण्ड पैदा हो गया और वो लोग राह से बे-राह हो गये।

एक अल्लाह की इबादत के बजाए बुतों की इबादत करने लगे और जुल्म व बिगाड़ के कामों को अपनी ज़िन्दगी का मक्सद बना लिया अल्लाह तआला ने इस कौम को सुधारने, समझाने और उन लोगों की बेहतरी करने के लिए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को पैगम्बर बना कर दुनिया में भेजा। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम उन्हें समझाते सीधा-सच्चा रास्ता बताते, लेकिन उनके दिलों पर जैसे मुहर लगी थी, वे सुनी अनसुनी कर देते, उन्हें बुरा भला भी कहते। क्यों की हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम उसी क़ौम के थे, इसलिए वो लोग उनका कुछ नुकसान भी नहीं कर सकते थे।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम और ऊंटनी का वाक़्या – Hazrat Saleh Alaihissalam Aur Untani Ka Waqya

आख़िर उस पत्थर दिल क़ौम ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के सामने एक शर्त रखी, उस क़ौम के लोगों ने कहा अगर आप कोई मोजज़ा दिखाओ तो हम मान लेंगे की आप अल्लाह के नबी हो और आपका पैग़ाम सच्चा है क़ौम के लोगों ने कहा मोजज़ा हमारे मुताबिक़ दिखाना होगा उसके बाद उन लोगों ने कहा की अगर इस पहाड़ में से एक लम्बी चौड़ी ऊंटनी दस महीने की गाभिन पैदा हो और उसके बाद उस ऊंटनी से एक उसका बच्चा पैदा हो जो तंदुरुस्त और लम्बा हो तब हम इस मोजज़े को देख कर आप पर ईमान जरूर लायेंगे और तब हर मामले में हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की फरमाबरदारी करेंगे।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने पहाड़  को हुक्म दिया और अचानक पहाड़ को चीरते हुवे एक बहोत लम्बी चौड़ी और दस महीने की गाभिनि ऊँटनी बाहर आई।पहाड़ में से उसी तरह की ऊँटनी निकली, जैसी उस क़ौम के लोगों की मांग थी। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम का ये मोजज़ा देखते ही समूद क़ौम के लोग हैरान रह गये। फिर उस ऊँटनी से एक बच्चा भी उसी कद और डील-डोल का पैदा हुआ। यह हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम का बहुत बड़ा मोजिज़ा था जो अल्लाह की कुदरत से ज़ाहिर हुआ था।

इब्ने उमर इस मोजिज़े को देखकर मुसलमान हो गया, दूसरे सरदारों का दिल भी ईमान की तरफ मुतवज्जेह हुआ। लेकिन जो पुराने और घाघ थे, उन्होंने कहा, यह सालेह तो बड़ा जादूगर है। यह नुबुव्वत का मोजिज़ा नहीं, बल्कि जादू का असर है इस तरह जिनके दिलों में ईमान की किरन फूटने वाली थी, वे फिर इन बातों से गुमराही के अंधेरे में चले गये। इस तरह उन्होंने अपना अंजाम तबाही के रास्ते पर डाल दिया।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम अब भी क़ौम को समझाते, सीधा-सच्चा रास्ता दिखाते मगर उस क़ौम पर शैतान इस तरह हावी हो चूका था की वो लोग हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को झूठा कहते और दिन रात खुदा की नाफरमानी करते, हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उन लोगों से ऊँटनी के बारे में कहा देखो, इस ऊँटनी की ज़िन्दगी से तुम्हारी ज़िन्दगी है और इसकी परेशानी से तुम्हारी परेशानी है। आपको बता दूँ उस ऊँटनी का ख़ुराक़ बहोत ज़्यादा था वो जब पानी पीती तो एक बार में जितनी पानी उसके सामने लाया जाता वो सब पी जाती अल्लाह तआला ने उस क़ौम के लोगों के लिए हुक्म दिया की एक दिन का पानी तुम लोग पियो और एक दिन का पानी वो ऊँटनी पीयेगी और उस दिन तुम लोग उस ऊँटनी का दूध पीना।

कुरआन मजीद में इसी की तरफ इशारा है। इस बात पर सब खुश हुए, मगर कई आदमियों को दुख भी हुआ। जब ऊंटनी अपनी बारी पर पानी पीने के लिए कुएँ पर जाती तो पूरा पानी एक एक बार में पी जाती, यह अलग बात है कि वह जितना पानी पीती थी, उसी के मुताबिक उतना दूध भी देती थी कि पूरे क़ौम के बर्तन दूध से भर जाते। ऊंटनी की शक्ल बहोत लम्बी थी, भारी भरकम जिस्म, सुरत-शक्ल, सब कुछ हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के मोजिज़े की जबरदस्त दलील थी।

इमाम नसई ने लिखा है कि उसके जिस्म की लम्बाई सौ गज थी, उसके पांव की ऊंचाई डेढ सौ गज थी जब वो ऊंटनी जंगल में चरने के लिए जाती, तो जंगल के दूसरे जानवर उस ऊंटनी को देखकर डर जाया करते और उससे दूर भागते थे और जब वो ऊंटनी गांव में मौजूद होती थी, तो गाँव के सभी जानवर जंगल में भाग कर पनाह लेते। नतीजा ये हुवा की जिन गाँव के लोगों के पास ज़्यादा जानवर थे वो लोग जानवरों की इस भागम-भाग से बड़े परेशान हो गए, यहाँ तक कि वो लोग ऊंटनी को मार डालने की बात सोचने लगे।

अल्लाह तआला ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम पर वही भेजी कि अपनी कौम से कहो कि इस ऊंटनी को कत्ल करने की बात न सोचें और खुदा के हुक्म के खिलाफ उसको न सताएं, वरना उसकी मौत तुम सब की मौत की वजह बनेगी, तुम खुदा के अज़ाब के शिकार हो जाओगे, फिर मोहलत खत्म हो जाने के बाद तुम पर न उसकी कोई मेहरबानी होगी, न उसे तुम लोगों पर तरस आयेगा। उस कौम में एक बुढ़िया थी उस बुढ़िया के पास माल भी बहुत था और वो बकरियां और ऊंट भी बहोत रखती थी।

इसी तरह एक बे-दीन औरत और थी जो बहुत मालदार थी। लेकिन उसऔरत के शौहर ईमान वाले और खुदा का खौफ रखने वाले थे। इन दोनों औरतों ने मिल कर वहां के सरदारों को ऊंटनी को मार डालने पर तैयार किया और कीदार बिन सालिफ और मस्ऊद बिन महदज को बुलाया । उस बुढ़िया ने कीदार से अपनी बेटी का निकाह कर देने का वादा किया और अमली तौर पर उसे कुछ नकद और गल्ला देकर यह तय करा लिया कि ऊंटनी को कत्ल करना है।

वे दोनों मल्ऊन सात आदमियों को साथ लेकर रास्ते में बैठे और ऊंटनी का इंतिज़ार करने लगे। जिस वक्त वह ऊंटनी निकली, पहले मस्ऊद ने उसको तीरों से मार कर घायल कर दिया, फिर कीदार ने उसके पाँवों को जख्मी किया, यहाँ तक कि इन सातों ने अल्लाह की निशानी उस ऊंटनी को जान से मार डाला। इस तरह उन ज़ालिमों ने अपनी बर्बादी का रास्ता खुद पैदा कर लिया। ऊंटनी का बच्चा उस पहाड़ की तरफ भागा और मारे डर के उस पहाड़ की चोटी के पास छुप गया।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम पर अल्लाह का अज़ाब – Hazrat Saleh A.S Ki Qaum Par Allah Ka Azab

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को जब इस जुल्म की खबर मिली, तो उनकी बेचैनी बढ़ गयी। वह परेशान इसलिए हुए कि अब अल्लाह का अज़ाब इस कौम पर नाज़िल हो कर रहेगा। फरमाया कि अगर उसके बच्चे को किसी तरह पकड़ कर अपने दर्मियान लाओगे तो शायद अल्लाह के गज़ब से अपने आप को बचा ले जाओगे। कौम के लोग भी डर गये थे, इसलिए वो लोग उस ऊंटनी के बच्चे को ढूंढने में बड़ी मेहनत की, पर वह बच्चा गायब हुआ तो गायब हुआ, इस तरह पूरी कौम अल्लाह तआला के अज़ाब के घेरे में आ गयी।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि तीन दिन के बाद अब तुम सब खत्म हो जाओगे और अज़ाब आ जायेगा। अज़ाब की निशानी यह है कि पहले दिन तुम्हारे मुंह पीले, दूसरे दिन लाल, और तीसरे दिन काले होंगे। फिर चौथे दिन अल्लाह के अज़ाब के शिकार बन कर तबाह हो जाओगे। दुश्मनों ने जब यह बात सुनी तो उन्होंने हज़रत सालेह अलैहिस्साम को मारने का इरादा कर लिया और छिप कर घात में बैठे थे। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को मारने का इरादा करने में पूरी कौम शामिल थी, लेकिन वे अपनी चाल चल रहे थे और अल्लाह जो सबसे बेहतर चाल चलने वाला है, वह अपनी चाल चल रहा था।

और अल्लाह की चाल के आगे चली ही किसकी है? हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के घर वालों को जब मालूम हुआ कि कौम के लोग ऐसा-ऐसा कर रहे हैं, तो उन्होंने जा कर पूछा कि अगर हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के वादे के मुताबिक तुम तीन दिन में फना हो जाओगे तो अल्लाह के दरबार में इस बे-अदबी से तो तुम्हें और तक्लीफ ही पहुंचेगी। और अगर हज़रत सालेह की बात गलत होगी, तो फिर तुम जो चाहो करना, हम सब उस वक्त समझ लेंगे। कौम वालों की समझ में यह बात आ गई, वे अपने-अपने घरों को वापस चले गये। दूसरे दिन फिर कौम के लोग जमा हुए, हर एक के चेहरे पर मौत की हवाइयाँ उड़ रही थीं। जमा हो कर सब बोले, आखिर हम तो मरेंगे ही, लेकिन हज़रत सालेह को भी मार कर अपने आगे दफ्न करेंगे।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने जब यह खबर सुनी तो तो अल्लाह की बारगाह में दुआ की तो अल्लाह तआला के हुक्म से वो अकील बिन नौफल के घर चले गये। कौम वाले परेशान ढूँढते फिरे और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम उन्हें हाथ न लगे। दूसरे दिन सुब्ह में सबके मुंह खून की तरह लाल हो गये। रंगत की यह तब्दीली देखकर उनकी बेचैनी बढ़ गई, रोने-पीटने लगे। फिर सनीचर के दिन उनके चेहरे बिल्कुल काले हो गये, क्या औरत, क्या मर्द सभी अपनी जिंदगी का आखिरी दिन समझ कर बेहद परेशान थे।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम उसी दिन अल्लाह के हुक्म से ईमान वालों को साथ लेकर फलस्तीन चले गये और वो बे-ईमान और बदबख्त अपनी बस्ती ही में पड़े रहे। इतवार की सुब्ह को समूद कौम के शैतानों ने हुनून कफन तैयार रख कर जिंदगी से चाहत उठा लिया और पहर दिन चढे । एक खौफनाक आवाज़ ऊपर से उनके कानों में आयी, सब के . दिल टुकड़े-टुकड़े और कलेजा हिस्सा-हिस्सा हो गया अल्लाह के । गजब से न ताकतवर बचा, न कमज़ोर, न मर्द बचा, न औरत।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम अल्लाह तआला के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ ठंडा हो जाने के बाद फिर वापस उस जगह आये, कौम की यह हालत देख कर रोये भी बहुत और लोगों को उस क़ौम से सबक भीलेने की नसीहत की। फिर हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम एक मुद्दत के बाद वहाँ से मक्का की तरफ चले गये और वहीं आपने पर्दा फ़रमाया और इस दुनिया को छोड़कर मालिके हक़ीक़ी से जा मिले (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन) सिर्फ वो अल्लाह तआला ही की ज़ात है जो फना से पाक है, बाकी सब फ़ना होने वाले हैं।

किसी उर्दू शायर ने क्या खूब कहा है – यह दुनिया है तहक़ीके दारे फना, तू हरगिज़ कभी इसमें मत दिल लगा, न आया कोई जो कि बाकी रहा, न सागर रहा और न साकी रहा।

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