हज़रत इमाम हुसैन और कर्बला का वाक़िआ-Karbala Ka Waqia In Hindi
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आज हम पढ़ने वाले है – हज़रत इमाम हुसैन और कर्बला का वाक़िआ-Karbala Ka Waqia In Hindi
हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हो की विशाल के बाद आपके बेटे यज़ीद को खिलाफत मिल जाती है यज़ीद एक बदतरीन और बदबख्त शैतान था शराबी था ज़ानी था यज़ीद को जब खिलाफत मिली तो यज़ीद समझ गया कि मेरी खिलाफत को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो कभी कुबूल नहीं करेंगे इसलिए यज़ीद मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद बिन उतबा को खत लिखा की हुसैन इब्ने अली अब्दुल्लाह इब्ने उमर और अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को कहो की मेरी बैअत को माने और अगर वो बात ना माने तो उन पर जुल्मों सितम करना.
हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने यज़ीद की बैअत करने से इनकार कर दिया क्योंकि यज़ीद आपके नज़दीक मुसलमानों के इमामत और खिलाफत के लायक नहीं था क्योंकि आप जानते थे यज़ीद फासिको-फाज़िर था ज़ानी था शराबी था और ज़ालिम था इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो मदीना शरीफ छोड़कर मक्का शरीफ तशरीफ ले आए अब आपको मक्का शरीफ में कूफ़ियों के ढेर सारे खत आने लगे उन खातों में लिखा हुआ था ऐ इमाम हुसैन आप कूफ़ा तशरीफ़ ले आइए यहां पर यज़ीद का जुल्मों सितम बढ़ता चला जा रहा है हम आपसे ही बैअत करेंगे यज़ीद की बैअत हमें हरगिज़ क़ुबूल नहीं है.
हज़रत इमाम हुसैन और कर्बला का वाक़िआ-Karbala Ka Waqia In Hindi
हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने हालात को समझ.ने के लिए अपने भाई मुस्लिम बिन अक़ील रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को यह कहकर कूफा भेजा कि जाओ जाकर वहां के हालात मालूम करो वहां के हालात कैसे हैं जब मुस्लिम बिन अक़ील रज़ियल्लाहु तआला अन्हो कूफ़ा पहुंचे तो वहां के लोगों ने बड़े ही एहतेराम के साथ आपका इस्तकबाल किया हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील रज़ियल्लाहु तआला अन्हो के हाथों में 18 हज़ार लोगों ने बैअत कर ली और हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने अपने भाई हज़रत इमाम हुसैन के नाम एक ख़त रवाना कर दिया जिसमें आपने लिखा यहां के हालात बिल्कुल सही है और 18 हज़ार लोगों ने बैअत भी कर ली है लिहाजा आप कूफ़ा जल्द से जल्द तशरीफ ले आए.
लेकिन जब यज़ीद ने उन लोगों को धमकीयां और लालच दी तो वह लोग अपनी बात से मुकर गए और इमाम मुस्लिम बिन अक़ील रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को शहीद कर दिया कूफ़ा के हालात इतने बदल चुके थे कि वह लोग जो हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील से मोहब्बत का दावा कर रहे थे अब वही लोग आपकी जान के दुश्मन बन गए वहीं दूसरी तरफ मक्का में मुस्लिम बिन अक़ील का भेजा हुआ खत हज़रत इमाम हुसैन तक पहुंच चुका था जिस खत में लिखा हुआ था कि कूफ़ा के हालात बहुत अच्छे हैं आप जल्द से जल्द तशरीफ ले आए लिहाजा हज़रत इमाम हुसैन ने फ़ौरन कूफ़ा जाने की तैयारी शुरू कर दी.
हज़रत इमाम हुसैन अपने तमाम अहले खाना के साथ कूफ़ा के लिए रवाना हुए इमाम हुसैन इब्ने अली को हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील की शहादत और कूफा की बेवफाई की खबर उस वक्त मिली जब आप मक्का शरीफ से कूफ़ा की तरफ रवाना हो चुके थे जब आप कूफ़ा शहर के बिल्कुल करीब पहुंच गए तो आपको यज़ीदी फौज ने रोकने की कोशिश की हज़रत इमाम हुसैन ने फरमाया कि मैं तुम लोगों के बुलाने पर ही कूफ़ा शहर में आया हूं अगर तुम लोग चाहते हो कि मैं ना आऊं तो वापस जाने दो मैं जाने के लिए तैयार हूं यज़ीदी फौज ने हज़रत इमाम हुसैन को कूफ़ा शहर में दाखिल नहीं होने दिया.
हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो का कर्बला का सफर-Hazrat Imam Husain Raziyallahu Tala Anho Ka karbala Ka Safar
लिहाज़ा हज़रत इमाम हुसैन अपने पूरे काफिले के साथ अपना रास्ता बदल लिए चलते-चलते जब आप एक चटियल मैदान में पहुंच गए तो आपने एक शख्स से सवाल किया कि यह कौन सी जगह है उस शख्स ने कहा इस जगह को कर्बला कहा जाता है आपने फ़ौरन अपने पूरे लश्कर को हुक्म दिया कि यहीं पर खेमा लगा दिया जाए मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों इस तरह से हज़रत इमाम हुसैन कर्बला में पहुंचे उधर यज़ीदी फौज को जब इस बात का इल्म हुआ की हज़रत इमाम हुसैन ने अपना खेमा करबला के मैदान में लगाया हुआ है तो यज़ीदी फौज ने भी फ़ौरन कर्बला के मैदान में पहुंचना शुरू कर दिया.
यज़ीद की जो फ़ौज कर्बला पहुँच रही थी उनकी सिपह सालारी इब्ने साद कर रहा था हज़रत इमाम हुसैन ने इब्ने साद से कहा कि या तो तुम मुझे यज़ीद के पास ले चलो या फिर मुझे अपने शहर मक्का वापस जाने दो लेकिन इब्ने साद इन दोनों बातों में से कोई भी बात नहीं मानी और वो आपको बैअत करने पर मजबूर करता रहा लेकिन हज़रत इमाम हुसैन ने उसकी बात से इंकार कर दिया दिन गुज़रते गए.
और तीन मोहर्रम का दिन आ गया अब ज़ालिम यज़ीद ने इमाम हुसैन के सामने 22 हज़ार सिपाहियों का लश्कर भेज दिया दूसरी तरफ हज़रत इमाम हुसैन के साथ 82 लोग थे जिसमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे कितनी हैरत की बात है कि यज़ीदियों में इमाम हुसैन का इतना खौफ था कि जहां इमाम हुसैन सिर्फ 82 लोगों के साथ मैदान ए कर्बला में थे जिसमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे वहीं यज़ीद ने मुकाबले के लिए आपके सामने 22 हज़ार का लश्कर भेज दिया जो कि इमाम हुसैन के सामने 100 गुना से भी ज्यादा था.
इमाम हुसैन के सामने यज़ीदी फौज के हौसले पस्त हो गए और उन लोगों में से किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी की वो हज़रत इमाम हुसैन से मुक़ाबला कर सके आखिरकार उन्होंने यह फैसला किया कि अगर इमाम हुसैन को हराना है तो उनका पानी बंद करना पड़ेगा तभी इनका मुकाबला किया जा सकता है दिन गुज़रते गए और सात मुहर्रम का दिन आ गया और सात मोहर्रम को ही यज़ीदी फौज ने इमाम हुसैन के काफिले वालों पर पानी बंद कर दिया.
हज़रत इमाम हुसैन और कर्बला का वाक़िआ-Karbala Ka Waqia In Hindi
आपको बताते चलें कि कर्बला के मैदान में पानी का कोई भी इंतज़ाम नहीं था सिवाय नहरे फुरात के लेकिन सात मोहर्रम के दिन नहरे फुरात का पानी भी हज़रत इमाम हुसैन के खेमे वाले लोगों के लिए बंद कर दिया गया हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथ मौजूद तमाम नौजवान लोग तो इस प्यास को बर्दाश्त करते रहे लेकिन छोटे-छोटे बच्चे और औरतों का प्यास की वजह से बुरा हाल हो चुका था फौजे यज़ीद जो चारों तरफ से इमाम हुसैन के घर वाले और तमाम साथियों को घेरे हुवे थी उन्होंने यह तय किया कि अब नौ मोहर्रम के दिन इमाम हुसैन को कत्ल कर दिया जाए (माज़अल्लाह)
हज़रत इमाम हुसैन ने हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से कहा अब्बास जाओ यज़ीदी फ़ौज के पास और उनसे कहो हमें एक रात अल्लाह की इबादत करने के लिए दी जाए जब हज़रत अब्बास ने यज़ीदी फ़ौज से एक रात की मोहलत के लिए कहा तो उन लोगों ने आपकी बात मान ली जब तक 9 मोहर्रम की तारीख आई तब तक हज़रत इमाम हुसैन को यह यकीन हो चुका था कि यज़ीद की फौज का मकसद सिर्फ और सिर्फ मुझे शहीद करना है इसके अलावा यज़ीद और कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं है इसलिए हज़रत इमाम हुसैन ने 9 मुहर्रम की रात में अपने तमाम खेमे वालों को एक जगह पर इकट्ठा किया.
और आपने कहा कि यह बात तो तय हो चुकी है यहां पर मौजूद सभी लोग एक-दो दिन के अंदर शहीद कर दिए जाएंगे इसलिए यहां मौजूद आपमें से जो भी वापस लौटना चाहते हैं वह लौट जाएँ हज़रत इमाम हुसैन ने फौरन खेमे में जल रहे तमाम दियो को बुझवा दिया और अंधेरा करवा दिया था ताकि जो भी जाना चाहे वो चला जाए थोड़ी देर बाद जब दियों को दोबारा जलाया गया तो सारे के सारे लोग बैठे आंसू बहा रहे थे यानी कोई भी हज़रत इमाम हुसैन को छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं था.
हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो और यज़ीदी फ़ौज के बीच जंग-Hazrat Imam Husain Raziyallahu Tala Anho Aur Yazidi Fauj Ke Beech Jang
आखिरकार 10 मोहर्रम का दिन आया और हज़रत इमाम हुसैन और यज़ीद की फौज के बीच जंग होना शुरू हो गई जहां एक तरफ यज़ीद की एक बड़ी फ़ौज थी तो वहीं दूसरी तरफ इमाम हुसैन के साथ सिर्फ 72 लोग थे इतने में फौजे यज़ीद का हमला शुरू हो जाता है और हर शहीद शहादत का जाम पीता गया कभी हुर शहीद होते हैं तो कभी कासिम शहीद होते हैं तो कभी अली अकबर शहीद होते हैं तो कभी औनो मोहम्मद शहीद होते हैं 3 दिन के प्यासे इमाम हुसैन के घर वाले और तमाम लोग यज़ीदी फौज से जंग करते रहे और एक-एक करके शहीद होते गए.
हज़रत अब्बास अलमदार से हज़रत इमाम हुसैन के 6 महीने के बेटे अली असगर की प्यास नहीं देखी गई आपने एक मस्कीज़ा लिया और घोड़े पर सवार होकर नहरे फुरात के किनारे पहुंच गए और आपने एक मस्कीज़ा भर लिया लेकिन जब आप पानी लेकर वापस लौटने लगे तो यज़ीदी फौज ने आपके ऊपर लगातार तीर बरसाना शुरू कर दिया था हज़रत अब्बास जब तक हज़रत इमाम हुसैन के खेमे तक पहुंच पाते तब तक यज़ीदी फौज ने तीर चला कर हज़रत अब्बास अलमदार को शहीद कर दिया था इस तरह हज़रत अब्बास अलमदार शहीद हो गए.
इस तरह एक-एक करके तमाम अहले बैत के नौजवान और हाशमी शेर शहादत का जाम पी लेते हैं धीरे-धीरे करके जब हज़रत इमाम हुसैन के सभी अफ़राद शहीद हो गए तो उसके बाद हज़रत इमाम हुसैन ने खुद मैदान में तलवार लेकर निकलने का फैसला किया इमाम हुसैन अपनी तलवार से काफी लंबे वक्त तक यज़ीदी फौज का अकेले मुकाबला करते रहे हज़रत इमाम हुसैन के तन्हा होने के बावजूद भी आप के मुकाबले में कोई भी नहीं आना नहीं चाहता था और उसकी सिर्फ एक ही वजह थी और वजह यह थी कि आप हज़रत अली के बेटे थे.
उस वक्त यज़ीदी फ़ौज का एक कमांडर इब्ने साद को यह यकीन हो चुका था कि हम किसी भी तरह से हज़रत अली के बेटे का मुकाबला नहीं कर सकते हैं इसलिए उसने अपने तमाम फौजियों को इमाम हुसैन के ऊपर एक साथ हमला करने का आर्डर दिया तमाम लोग हज़रत इमाम हुसैन पर एक साथ मिलकर हमला कर रहे थे लेकिन उसके बावजूद भी इमाम हुसैन लगातार यह साबित कर रहे थे कि बातिल चाहे तादाद में जितने भी हो लेकिन वो हक और सच के मुकाबले में बिल्कुल भी टिक नहीं सकता.
इमाम हुसैन की शहादत के बाद का वाकया-Hazrat Imam Husain R.A Ki Shahadat Ke Baad Ka Waqia
जब हुसैनीयत और यज़ीदियत के बीच बड़ी ही खतरनाक जंग चल रही थी कि इसी बीच में नमाज़े असर का वक्त हो गया हज़रत इमाम हुसैन ने ऐसे मुश्किल वक्त और ऐसी जख्मी हालत में भी असर की नमाज़ पढ़ने का इरादा किया आपने जैसे ही नमाज़ पढ़ना शुरू किया यज़ीदी फौज को वह मौका मिल गया जिसका वह लोग एक लंबे वक्त से इंतज़ार कर रहे थे यानी जैसे ही हज़रत इमाम हुसैन सजदे में गए सिमर जिल जोसन ने आपकी गर्दन पर तलवार चलाकर आपके सर मुबारक को जिस्म से जुदा कर दिया.
हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के बाद यज़ीदियों ने आपके सर मुबारक को नेज़े पर रखकर पूरे कूफ़ा में घुमाया था आपके सर मुबारक को गली-गली में घुमा कर जुलूस निकाला गया था कर्बला की इस जंग में हज़रत इमाम हुसैन के घर वालों में से सिर्फ आपकी एक औलाद ही बच सकी थी जिनका नाम हज़रत ज़ैनुल आब्दीन था इसके अलावा हज़रत इमाम हुसैन के घर की तमाम औरतों को कैदी बनाकर कूफ़ा लाया गया था भले ही उस दिन इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को शहीद कर दिया गया था लेकिन आज भी हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो पूरी दुनिया में कयामत तक के लिए जिंदा है | यज़ीद डूब गया शाम के अंधेरे में हुसैन ज़िंदा हैंहर दिल में रोशनी की तरह.
दोस्तों अल्लाह तआला की बारगाह में अल्लाह हम सय्य्दना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से सच्ची मोहब्बत करने की तौफ़ीक़ दे और लिखने या हमारे पढ़ने में किसी क़िस्म की गलती हुई हो तो अल्लाह इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हो के सदके में माफ़ करे. हज़रत इमाम हुसैन और कर्बला का वाक़िआ-Karbala Ka Waqia In Hindi
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