हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी के बारे में

Hazrat Khwaja Nizamuddin Auliya R.A Ki Zindagi Ke Baare Me- हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी के बारे में

आज का बयान हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी के बारे में हैं।

hazrat khwaja nizamuddin auliya ki zindagiहज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया महबूब-ए-इलाही रहमतुल्लाह अलैह के आबाओ-अजदाद बुखारा के रहने वाले थे। हज़रत महबूब ए इलाही रहमतुल्लाह तआला अलैह का खानदान बुखारा से हिजरत करके पहले लाहौर आया। फिर लाहौर से बदायूं सकूनत इख्तियार फ़रमाई और आपका सिलसिला नसब 15 वास्तो से सैयदना हज़रत अली रज़ियल्लाहू तआला अन्हो से मिलता है। आपके दादा सैयद अली बुखारी रहमतुल्ला तआला अलैह और उनके चचा ज़ाद भाई हज़रत सैयद अरब रहमतुल्ला तआला अलैह दोनों बुज़ुर्ग अपने-अपने अहलो-अयाल के साथ बुखारा से हिजरत करके बदायूं में आबाद हो गए। बाद में दोनों हज़रात ने आपस में मशवरा किया और अपने खानदानी रिश्ते को ज़्यादा मज़बूत करते हुए हज़रत सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह की शादी सैयदा ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाह अलैहा से कर दी।

आपकी वालिदा-माजिदा का नाम सैयदा ज़ुलैख़ा था जो सैयद अरब की बेटी थी और ज़ोहद और तक़वे में कमाल दर्जा रखती थी। इबादत गुज़ार और शब-बेदार थी अपने वक़्त की वलिये कामिला थी और उनको अपने वक़्त की राबिया बसरी भी कहा जाता था। हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की विलादत बरोज़े बुध तारीख 27 सफर 636 हिजरी बदायूं में हुई। विलादत के बाद आपका नाम हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के मुबारक नाम से मोहम्मद रखा गया। मगर दुनिया में आपने अपने अलक़ाबात से – सुल्तानुल मशायख, महबूब-ए-इलाही, सुल्तान-उस-सलातीन, सुल्तान-उल-औलिया, और निज़ामुद्दीन औलिया से शोहरत पाई है।

जब आपकी उम्र मुबारक 5 साल की थी तो आपके वालिद इस दारे फानी से रुख्सत हो गए। आपकी तालीम तरबियत और परवरिश की ज़िम्मेदारी आपकी वालिदा-माजदा सय्यदा ज़ुलैख़ा रहमतुल्ला अलैहा के ऊपर आ गई आपकी वालिदा बहोत ही समझदार और दीनदार ख़ातून थी आप बड़े खानदान की बेटी थी। भाइयों ने चाहा भी के अपनी बहन की माली मदद कर दें, लेकिन आपने इनकार कर दिया और अपने बेटे के लिए आप खुद काम-काज करके पैसा कमाती थी और उसी से घर की ज़रूरत को पूरा करती थी। हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन रहमतुल्ला तआला अलैह कम उम्र के होते हुए भी कभी खाने के लिए जिद नहीं फरमाया करते थे और सब्र और बर्दाश्त का मुज़ायरा फरमाते थे।

जिस रोज़ घर में फाके की नौबत आती तो आप अपनी वालीदा-माजिदा से खाना तलब फरमाते तो आपकी वालिदा-माजिदा इरशाद फरमाती कि बेटा आज हम अल्लाह तआला के मेहमान हैं। हज़रत महबूबे इलाही इस वाक़्या का ज़िक्र करते हुए फरमाते हैं कि जब मेरी वालिदा-माजिदा मुझसे यह फरमाती थी कि आज हम अल्लाह ताला के मेहमान हैं तो उनकी बात सुनकर मुझे बहुत खुशी मिलती थी और मैं इस इंतजार में रहता था कि कब मेरी वालिदा-माजिदा यह इरशाद फरमाती हैं कि आज हम अल्लाह तआला के मेहमान हैं इसलिए कि उनके ये कहने से मुझे जो खुशी और सुकून मिलता था वह बयान से बाहर है।

आपकी वालिदा-माजिदा ने आपको क़ुरआन-ए-मुकद्दस की तालीम के लिए मदरसा में दाखिला फरमाया बहुत जल्द आपने क़ुरआन-ए-मुक़द्दस को हिफ़्ज़ कर लिया। इसके बाद और तालीम हासिल करने के लिए आप अपनी वालिदा-माजिदा और अपनी हम शिरा और आपने एक अज़ीज़ रिश्तेदार के साथ बदायूं से दिल्ली तशरीफ लाए। दिल्ली में आप रहमतुल्ला तआला अलैह ने अपने वक़्त के बड़े बड़े बुज़ुरगाने दीन से इल्मे-दीन हासिल किया आपने और कमाल दर्जे तक पहुंच गए दीनी उलूम मुकम्मल हो गए तो आपको क़ाज़ीउल-क़ुदज़ात बनाने के लिए लाहौर तशरीफ लाने को कहा गया आप लाहौर में क़ाज़ीउल-क़ुदज़ात की मसनद संभालने को तशरीफ ले जा रहे थे कि रास्ते में एक फ़क़ीर मजज़ूब बैठे हुए मिले उन्होंने पूछा कि

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया और बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्ला तआला अलैह की मुलाक़ात-Hazrat Khwaja Nizamuddin Auliya R.A Aur Baba Fariduddin Ganj Shakar R.a Ki Mulaqat-

निज़ामुद्दीन कहाँ तशरीफ़ ले जा रहे हो तो आपने जवाब दिया कि क़ाज़ीउल-क़ुदज़ात बनकर मसनद संभालने जा रहा हूं तो उस फक़ीर साहब ने फरमाया के क़ाज़ी मत बनो कुछ और बन जाओ तो आपने पूछा कि कहां जाऊं तो उस फक़ीर ने कहा कि पाकपतन शरीफ जाओ नाज़रीन उसके बाद  हज़रत फरीदुद्दीन मिल्लत जिन्हें दुनिया बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्ला तआला अलैह के नाम से जानती है आप जब फरीदुद्दीन गंज शकर की खिदमत में पहुंचे तो फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्ला तआला अलैह ने आपको देखकर आपका इस्तक़बाल किया

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया और बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्ला तआला अलैह थोड़ी देर तक आपकी बाते होती रही उसके बाद हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन रहमतुल्ला तआला अलैह ने बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्ला तआला अलैह के दस्ते मुबारक पर बैअत की और उनके हल्क़-ए-इरादत में शामिल हो गए। बाबा फरीदुद्दीन ने अपने खादिम से फरमाया इस तालिबे इल्म के लिए जमात खाने के अंदर जमीन पर सोने की बजाय एक चारपाई का बंदोबस्त किया जाए

तो हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन ने सोचा के बड़े बड़े बुज़ुर्गाने दीन तो नीचे सोए हुए हैं मुझे ये ज़ेब नहीं देता की वो ज़मीन पर सोये और मै चारपाई पर आपने खादिम से ये बात कही तो ख़ादिम ने फरमाया की हज़रत मुर्शिद का हुक्म है की आप ज़मीन पर नही बल्कि चारपाई पर सोए। पाक-पतन शरीफ से वापसी पर हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन रहमतुल्ला तआला अलैह जब दिल्ली तशरीफ़ लाए तो आपका कोई खुद का ज़ाती मकान नहीं था इसलिए एक सराय में आपने क़याम किया।

कुछ दिनों तक उस सराय में रहे फिर दिल्ली के एक अमीर शख्स रवाद अर्ज़ का मक़ान खाली हुआ जो के हज़रत अमीर खुसरो रहमतुल्ला तआला अलैह के नाना थे तो निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्ला तआला अलैह उनके घर में ठहर गए। यह घर बहुत बड़ा था लेकिन कुछ ही दिनों के बाद रवाद अर्ज़ के बेटे वापस आ गए और उन्होंने फौरी तौर पर ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्ला अलैह को मजबूर किया कि हमारा मकान खाली कर दिया जाए। उसके बाद हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्ला तआला अलैह के पास जो किताबें थी उन्हें उठाकर घर से बाहर निकले और सोचते रहे कि कहां तशरीफ़ ले जाएं फिर सामने एक मस्जिद थी जिसे छप्पर वाली मस्जिद कहा जाता है वहां पर आप तशरीफ लाए।

एक दिन आपने अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ की के मौला कहा जाऊ तो आपको इरशाद हुआ के गयासपुर आप तशरीफ़ चले जाए आप का आलम ये था के आपके घर मे एक थैला लटका रहता था अफ्तार के वक़्त उस थैले से रोटियों के टुकड़े निकालकर लाए जाते थे आप और आप के चाहने वाले अक़ीदत मंद उसी रोटी के टुकड़ों से रोज़ा खोलते थे फिर वो वक़्त भी आ गया की जब हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह अपने मुरीदे खास हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को अपने पास बुलाया और इरशाद फरमाया कि मैं तुमको अपना खलीफा बनाऊंगा मुर्शिद की बात सुनकर आपकी खुशी की कोई इम्तिहा न रही आप इसी इंतजार में रहे की कब मुर्शिद का हुक़्म होता है।

एक दिन आपके पिरो-मुर्शिद ने आपको बुलाया और इरशाद फरमाया कि निज़ामुद्दीन तुम्हें याद है मैंने तुमसे कहा था तो आपने फ़रमाया जी हुज़ूर याद है फिर बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया कागज़ लाओ ताकि खिलाफत तहरीर कर दी जाए उसके बाद कागज़ लाया गया और उस पर खिलाफत नामा तहरीर करके हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्ला तआला अलैह के हवाले कर दिया गया। और इसके साथ यह भी इरशाद फरमाया कि निज़ामुद्दीन अल्लाह तआला तुम्हे नेक बनाए तुम एक ऐसे दरख़्त के जैसे बनोगे के जिसके साए में अल्लाह की मख़लूक़ राहत और फ़ज़ीलत हासिल करेगी।

फिर फरमाया कि निज़ामुद्दीन एक बात याद रखना कि अगर किसी से कर्ज़ लो तो उसकी जल्द अदायगी की कोशिश करना और अपने दुश्मनों को हर हाल में खुश रखने की कोशिश करना और यह जो खिलाफत नामा लिखा गया है इसे हैंसी में मौलाना जमालुद्दीन को और दिल्ली में काजी मुमताजुद्दीन को दिखा देना हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्ला तआला अलैह ने जवानी के दिनों में 30 साल तक सख्त मुजाहिदे किए हैं और अपनी उम्र के आखिरी हिस्से में इससे भी ज्यादा सख्त मुजाहिदे किए है। यानी आप 80 साल की उम्र मुबारक में भी पांच वक्त की नमाज़ के लिए जमात-खाना के बाला खाने से नीचे तशरीफ़ लाते थे और ये बाला खाना बहोत ऊँचाई पर था बुढ़ापे और ज़ौफ के हालत में भी आप जब इफ्तार करते तो हल्की और मामूली सी चीज़ों से आप इफ्तार करते शबबेदारी की वजह से आपकी आंखों में सुर्खी छाए रहते थे।

रात और दिन में फ़र्ज़ इबादत के इलावा 400 से 500 नफिल नमाज़े आप पढ़ते थे और ज़्यादा वक्त तस्बीह पढ़ने में गुज़ारा करते थे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के जो नेक बंदे होते है अल्लाह उन्हें ऐसे मर्तबे अता करता है हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी ज़िंदगी अल्लाह और उसके रसूल की मोहब्बत में गुज़ारी और अल्लाह ने आपको इतना बुलंद मक़ाम अता किया। एक दिन आपने अपनी आंखों में आंसू भरकर इरशाद फरमाया कि मैं दुनिया से नफरत करता हूं और मुझे जो कुछ मिला है अपने पीर की बरकत से मिला है।

आगे आपने इरशाद फ़रमाया इसकी वजह ये है कि एक दिन जब मैं अपने पीरो-मुर्शिद की बारगाह में रुखसत होने लगा तो उन्होंने मुझे सफर में खर्च के लिए एक सिक्का दिया। अभी थोड़ी देर ही गुजरी थी कि उनका यह हुक्म हुआ कि आज ना जाओ कल चले जाना तो मैं अपने पीर के हुक़्म से रुक गया। फिर जब अफ्तारी का वक़्त आया तो घर मे रोज़ा अफ्तार के लिए कोई चीज़ भी मौजूद नही थी। मैंने अर्ज़ की हुज़ूर आपने मुझे एक सिक्का जो दिया है अगर आप इजाज़त दो तो मैं उस सिक्के से इफ्तारी का कोई इंतेजाम कर लूं। पिरो-मुर्शिद मेरी इस बात से बहोत खुश हुए और मेरे हक़ में दुआ की और फिर इरशाद फरमाया कि निज़ामुद्दीन मैंने अल्लाह तअला से तुम्हारे लिए थोड़ी सी दुनिया तलब की है

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया फरमाते है मुर्शिद की ये बात सुनकर मैं लरज़ गया। मेरे दिल में यह ख्याल आया कि बेशुमार बुज़ुर्ग इस दुनिया के फ़ितने में मुब्तिला हो गए है। ये खयाल अभी मेरे दिल मे आया ही था के पिरो-मुर्शिद बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्ला अलैह ने मुझसे फरमाया कि तुम तसल्ली रखो तुम किसी फ़ितने में नही मुब्तिला होने वाले मुर्शिद पाक की यह बात सुनकर मैं बहुत ही खुश हुआ। फिर फ़रमाया की एक शब मैंने रात के आखिरी पहेर में देखा कि मकान के सहन में एक औरत झाड़ू लगा रही है। मैं आगे बढ़कर उससे पूछा कि तुम कौन हो उसने जवाब दिया कि मैं दुनिया हूं और मखदूम के घर में झाड़ू दे रही हूं। मैंने उसे डांटते हुए कहा कि ऐ फितने में डालने वाली मेरे घर में तेरा क्या काम है जा मेरे घर से चली जा उससे मैने कई बार जाने को कहा लेकिन वो जाने का नाम नही लेती थी फिर मैंने उसे गर्दन से पकड़ा और उसे खींचकर घर से बाहर निकाल दिया।

लेकिन वह फिर भी बार-बार अपनी तरफ मुतवज्जह करती थी। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फिर वो वक़्त भी अता किया कि आप खुद तो हमेसा रोज़ा रखने-वाले थे लेकिन दोनों वक़्त शाही दस्तरखान आपके यहाँ लगता और उस दस्तरखान पर अमीर और गरीब शहरी-परदेसी गुनाहगार और नेक सब एक साथ बैठ कर खाना खाते और ले जाने की भी इजाज़त थी बहोत लोग खाते और खाना बांधकर भी ले जाते थे। और हर तरह के खाने गरीब और अमीर के लिए दस्तरखान पर मौजूद होती थी। फिर एक वक्त ऐसा भी आता है जो कि आपका आखिरी वक्त था विशाल से थोड़ी देर पहले अपने मुरीद और खलीफा हज़रत सैयद नसीरुद्दीन चिराग, देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह के दिए हुवे तबर्रुक़ात खास ख़िरका मुबारक, तस्बीह असा, जा-नमाज़, लकड़ी का एक प्याला, और वो तमाम चीज़े जो आपको आपके मुर्शिद पाक की तरफ से अता की गई थी आपने ने उन्हें दी और इरशाद फ़रमाया के तुम देहली में रहना और लोगों की सख्तियां बर्दाश्त करना।

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के विशाल का वक़्त बिल्कुल करीब आ पहुंचा था सारी रात आप पर गसी की कैफियत तारी रही जब फ़ज़र की आज़ान हुई तो आप कुछ होश में आए और फज़र की नमाज़ अदा की मगर बेहोशी की आलम और इस्तिग्राक की आलम थी इसलिए कई बार नमाज़े फ़ज़र अदा की ख़ादिम और आपके इरादतमंद आपकी खिदमत में हाज़िर थे। माहौल पर एक अजीब तरह की अफसुर्दगी छाई हुई थी। पता नहीं क्या होने वाला है हर कोई गुमसुम था कि सूरज अपनी पूरी चमक-दमक के साथ तुलू हुआ उसकी किरने और अरज़ो फलक पर फैल रही थी कि शमशुल औलिया आफताबे विलायत हज़रत महबूबे इलाही रहमतुल्लाह तआला अलैह इस दारे फानी से दारे बक़ा की तरफ कूंच कर गए (इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैहि राजेऊन)

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की नामज़े जनाज़ा किसने पढ़ाई – Hazrat Khwaja Nizamuddin Auliya R.A Ki Namaze Janaza Kisne Pahai-

आपकी नमाज़े जनाज़ा हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के पोते शैखुल इस्लाम हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने पढ़ाई। नमाज़े जनाज़ा के बाद उन्होंने इरशाद फ़रमाया के आज मुझ पर ये हक़ीक़त आशिकारा हुई है कि हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया ने मुझे क्यों देहली में रोक रखा था। हालांकि मैं 4 साल से मुल्तान जाने का इरादा किए हुए था। लेकिन हज़रत मुझसे फरमाते थे के आखिर इतनी जल्दी क्या है चले ही जाओगे तो मैं समझता हूं कि आपके इसरार का मकसद सिर्फ यह था कि मैं आपके नमाज़े जनाज़ा की इमामत की सआदत हासिल कर सकूं। आपके नमाज़े जनाज़ा में लाखों अक़ीदत मंद और मुरीदों ने शिरकत की जिनमे औलिया-किराम, उल्माए-किराम, मशाइख-इज़ाम आपके मुरीदीन खुल्फा खादीम और हर जगह के खास और आम लोग शामिल थे।

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की मज़ार शरीफ किसने बनवाई – Hazrat Khwaja Nizamuddin Auliya R.A Ki Mazar Shareef Kisne Banwai-

हिंदुस्तान का हुक्मरान सुल्तान मोहम्मद तुगलक भी आप के जनाज़े में शामिल था और उसने आपके जनाज़े को कंधा भी दिया। सुल्तान तुग़लक़ आपके विसाल पर इस क़दर रोया के इस गम में उसे किसी भी तरह से करार नही आता था और फिर नमाज़े ज़ोहर के बाद आपको उसी जगह पर दफन कर दिया गया जहाँ आज आपका मज़ार शरीफ है। आपके अकीदतमंद सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ ने आपके मज़ार मुबारक की खूबसूरत और आलीशान इमारत तामीर करवाई और उस पर एक गुम्बद भी तामीर करवाया आपका मज़ार शरीफ दिल्ली में है आपने शादी नहीं कि थी इस लिए आपकी कोई औलाद नहीं थी। और रूहानी सिलसिला आपका पूरे हिंदुस्तान में फैला और अभी तक जारी और सारी है और क़यामत तक जारी और सारी रहेगा।

क्यों कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इरशाद फ़रमाया (Arabic: أَلَا إِنَّ أَوْلِيَاءَ اللَّهِ لَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ) अल्लाह के औलिया को इस दुनिया मे भी कोई ग़म और खौफ नही और नाही आख़िरत में वो गमगीन होंगे। दोस्तों ये थी हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी के बारे में कुछ वाक़्यात जो कम अलफ़ाज़ में मैंने आपके सामने रखी हालाँ की मै उस क़ाबिल नहीं की मै उनके मर्तबे को बयान कर सकूँ फिर भी मुझे जितनी जानकारी मिली उस हिसाब से मैंने जो कुछ भी लिखा अगर इसमें कोई गलती हुई हो तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त माफ़ करे और दुआ है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमे भी अपने औलिया के नक़्शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फरमाए आमीन।

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