हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो का दर्दनाक वाक़्या-Hazrat Bilal R.A Ka Waqia

हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो का दर्दनाक वाक़्या पढ़कर आपके आंखों से आंसू आ जाएंगे – Hazrat Bilal R.A Ka Waqia

हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो का दर्दनाक वाक़्या-Hazrat Bilal R.A Ka Waqia

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दोस्तो आज हम हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो का वाक़्या जानने वाले है जिसे पढ़कर आपके आंखों से आंसू आ जाएंगे इस वाक़्या को ज़रूर पढ़े – ये वाक़्या है हज़रत बिलाल पर होने वाले ज़ुल्मो सितम का जब हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने कलमा पढ़ा और प्यारे आक़ा मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर ईमान लाये उसके बाद हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो का मालिक किस तरह उन पर ज़ुल्म किया करता था आपको तपती हुई ज़मीन पर लिटा दिया जाता था जो कि ताँबे की तरह गरम होती थी उसके बाद आपके ऊपर एक बड़ा सा पथ्थर रख दिया जाता था और किस तरह से आपके पैरों में रस्सी डालकर मक्का की गलियों में घुमाया जाता था।
पूरा वाक़्या पढ़कर आपके आंखों से आंसू आ जाएंगे गुज़ारिश है इस वाक़्या को पूरा ज़रूर पढें और इसे और लोगो तो पहुँचाये भी। एक रात अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का शहर की एक गली से गुज़र रहे थे तभी आपने एक घर से किसी आदमी की रोने की आवाज़ सुनी। आवाज़ में इतना दर्द था कि आप उस शख्स के पास जाने से खुद को रोक नही पाए। आप उस घर के अंदर गए तो देखा कि एक नौजवान जो कि हब्सि था वो चक्की पीस रहा है और रो रहा है। यह देख कर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उसके रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि मैं एक गुलाम हूं सारा दिन अपने मालिक की बकरियों को चराता हूं। शाम को थक हार कर जब घर में आता हूं तो मेरा मालिक मुझे एक गेहूं की बोरी पीसने के लिए दे देता है जिस को पीसने में मुझे सारी रात लग जाती है। मैं अपनी किस्मत पर रो रहा हूं क्योंकि मैं भी तो एक इंसान हूं मेरा जिस्म भी तो आराम मांगता है मुझे भी तो नींद सताती है, लेकिन मेरे मालिक को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आता है। क्या मेरी किस्मत में इसी तरह से रो-रो कर ही ज़िन्दगी गुजारना लिखा है तो यह सुनकर आप सल्लल्लाहो सल्लम ने फ़रमाया के तुम्हारा मालिक मेरी बात को नहीं मानेगा लेकिन मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूं फिर आप सल्लल्लाहो सल्लम ने फ़रमाया के तुम सो जाओ मैं तुम्हारी जगह चक्की पीस देता हूँ।
ये सुनकर वो गुलाम बहोत खुस हुआ और और शुक्रिया अदा करके सो गया फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम रात भर जाग कर उस गुलाम के बदले चक्की पीसते रहे दूसरे दिन फिर आपने ऐसा ही किया इसी तरह से आपने कुछ दिनों तक उस गुलाम की जगह खुद चक्की पीसते थे। रात भर चक्की पीसते और सुबह आप अपने घर को चले जाते उसके बाद एक रात जब आप उस गुलाम के पास पहुंचे तो गुलाम ने पूछा कि आप कौन हो और मेरा आप इतना ख्याल क्यों कर रहै हो हम गुलामों से ना तो किसी को कोई डर है और ना ही कोई फायदा ये सुनकर प्यारे आक़ा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये सब मैं इंसानी हमदर्दी की वजह से कर रहा हूं इसके अलावा मुझे तुमसे कोई गरज़ नही। उस गुलाम ने फिर पूछा की आप हो कौन उसके बाद आप सल्लल्लाहो सल्लम ने फ़रमाया के क्या तुमने सुना है कि मक्का शहर में एक शख्स है जो खुद को अल्लाह का नबी कहता है। उसने कहा कि हां, मैंने सुना है उसका नाम मोहम्मद है फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के हाँ मैं वही मोहम्मद हूँ ये सुनते ही हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने कहा कि अगर आप ही वो मोहम्मद है तो मुझे भी अपना कलमा पढ़ा दीजिये क्योंकि बेशक आप अल्लाह के नबी हो  (सुबहानअललाह)

उसके बाद हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो कलमा पढ़ कर इस्लाम मे दाखिल हो गए। दोस्तो उसके बाद ये बात जब हज़रत बिलाल के मालिक को पता चला कि मेरे गुलाम ने मोहम्मद मुस्तफा का कलमा पढ़ लिया है तो उसने उस गुलाम यानी हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो को पहले से भी ज़्यादा दुख और तक़लीफ़ देना शुरू कर दिया। हज़रत अस्सार बिन सादिक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हो कहते है कि मैं रहने वाला तो मदीने का था लेकिन एक बार जब मैं मक्का गया तो देखा कि एक काले रंग के शख्स को खुजूर की रस्सी में कुछ लोगों ने बांध रखा है और मक्का की गलियों में उसे घसीट रहे है फिर मैं उनके पास गया और उनसे पूछने लगा कि ये शख्स कौन है और तुम तुम इसपर इतना ज़ुल्म क्यों कर रहे हो इसे तुम किस गुनाह की सज़ा दे रहे हो तो फिर उन लोगो ने कहा कि इसका नाम बिलाल है ये खाता हमारा है और कलमा मुस्तफा का पढ़ता है। हम इसको मुस्तफा से दूर करना चाहते हैं तो दोस्तो हज़रत सादिक़ रज़ियल्लाहू तआला अन्हो फरमाते है कि मैंने देखा कि वह लोग जैसे जैसे उसको घसीट रहे थे वैसे वैसे उसकी जबान से आहट आहट की आवाज तेज़ होती जा रही थी।

वो लोग उस गुलाम पर बहोत ज़ुल्म कर रहे थे कभी उसके हाथ पैर पकड़ उसे ज़मीन पर गिरा देते थे तो कभी उसके सीने पर बड़ा सा पथ्थर पटक रहे थे तो कभी उस हब्सि गुलाम के हाथों में बेड़िया ठोक रहे थे तो कभी उसकी ज़बान पर गर्म कोयले रख रहे थे तो कभी उनके पाँव में रस्सी डालकर उनको घसीट रहे थे। उस हब्सि गुलाम का पूरा जिस्म लहू-लुहान हो चुका था मगर फिर भी वो गुलाम मुस्कुरा रहा था इतने में एक शख्स ने कहा कि ऐ बिलाल ये क्या मामला है ये लोग तुम पर इतना ज़ुल्म कर रहे है और तुम हो कि मुस्कुरा रहे हो तो हज़रत बिलाल ने जवाब दिया कि ऐ शख्स अगर तुम बाजार में मिट्टी का प्याला भी खरीदने जाओगे तो उसको भी तुम ठोक कर देखोगे के कहीं ये कच्चा तो नही है इसी तरह से मेरा अल्लाह भी देख रहा है की कही बिलाल कच्चा तो नही है मेरी खाल भी उधेड़ दिया जाएगा तो भी मैं हक़ की सदा बुलंद करता रहूंगा।

प्यारे दोस्तो इसी तरह से हज़रत अबूबकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु तआला अन्हो फरमाते हैं की एक दिन मैं मक्का की एक गली से गुज़र रहा था कि अचानक मैने किसी के चीखने और चिल्लाने की आवाज़ सुनी आवाज़ में इतना दर्द था कि उसको सुनकर मैं बेचैन हो गया और उस आवाज़ की तरफ चल दिया मैं दौड़ता हुआ वहाँ गया जहां से वो आवाज़ आ रही थी और जाकर एक तरफ खड़ा हो गया। फिर मैने देखा कि एक काले रंग के आदमी को 5 लोग मिलकर बड़ी बेरहमी से मार रहै हैं। 4 लोगों ने उसके हाथ और पैर पकड़ रखे हैं उसको उठाते है और फिर ज़मीन पर गिरा देते हैं फिर उठाते है फिर ज़मीन पर गिरा देते है और वो पाँचवा अपने हाथ मे बड़ा सा पथ्थर लिए हुए खड़ा है जैसे ही वो चारो लोग उसको ज़मीन पर पटकते है तो वो पाँचवा शख्स उस पर बड़ा सा पथ्थर डाल देता है।

हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू तआला अन्हो फरमाते है कि मंज़र देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं उनके पास गया मैंने देखा कि वो गुलाम पूरी तरह लहू-लुहान था उसका पूरा जिस्म लहू से तर था लेकिन फिर भी वो हक़ हक़ की सदा लगा रहा था मैंने उनसे कहा कि ऐ लोगों रुको तुम क्यों इस गरीब को मार रहे हो उन लोगों ने कहा कि हम इसे मारेंगे और बहुत मारेंगे क्योंकि यह खाता हमारा है और कलमा मुस्तफा का पढ़ता है। हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने कहा कि छोड़ दो इसे और मुझे बेच दो उन लोगो ने सोचा कि हम इसे इतनी ज़्यादा कीमत बता देते है कि ये यहा से चला जाए।

फिर हम इसपर और ज़ुल्म करेंगें यही सोचकर उन पाँचो ने उस गुलाम की इतनी बड़ी कीमत बोल दी ये सुनकर हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने फरमाया की अगर तुम इसकी दुगनी क़ीमत भी बोलते तो भी मैं इस शख्स को यहां से लेकर ही जाता। ये सुनकर उन लोगो ने कहा कि आखिर ऐसा क्या है इस काले रंग के गुलाम में जो तुम इतनी ज्यादा कीमत पर तुम इसे खरीद रहे हो हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने कहा तुम नही समझोगे पूरी दुनिया देखेगी यही गुलाम जन्नत का सौदा करेगा। उसके बाद हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने दीनार और दिरहम मंगवाई उन लोगो को देकर उस गुलाम को आज़ाद करा दिया हज़रत बिलाल लहू-लुहान ज़मीन पर लेटे हुए है और कहने लगे ऐ अबू बकर आज तुमने मुझपर ये एहसान किया है मुझे आज़ाद करा के अब एक और एहसान मुझपर कर दो मुझे मेरे आक़ा मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास पहुँचा दो।

तो दोस्तों पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो ने ज़ुल्म सहन किये और किस तरह मुसीबतें बर्दाश्त किये लेकिन नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का साथ कभी नही छोड़ा और आज बड़े बड़े बादशाह भी उस गुलाम पर फख्र करते है उस गुलाम का सदक़ा मांगते है उस गुलाम जैसी गुलामी मांगते है हज़रत बिलाल को अपनी जान क़ुर्बान करना गवारा था लेकिन नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का साथ छोड़ना गवारा नही था आज पूरी दुनिया इस गुलाम को बिलाल हब्सि रज़ियल्लाहु तआला अन्हो के नाम से जानती है। नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम की मोहब्बत ने एक गुलाम को वो मक़ाम अता किये जिसके सामने दुनिया के बड़े से बड़े बादशाह भी छोटे हो गए। (सुबहानअल्लाह)

दोस्तो अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है कि अल्लाह हमे हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से सच्ची मोहब्बत करने की तौफ़ीक़ दे और सच्चा आशिके नबी बनने की तौफ़ीक़ दे (आमीन)

Hazrat Bahlol Dana Aur Ek Buzurg Ka Waqia-हज़रत बहलोल दाना और एक बुजुर्ग का दिलचस्प वाक़्या
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