हाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindi

हाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindi

मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों आज का हमारा बयान हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दो बेटों के बारे में हैं जिनका नाम हाबील और क़ाबील है इसके अलावा हम ये भी जानेंगे की दुनिया का पहला क़ातिल कौन है जिसने किसी इंसान की जान ली जो की बहोत बड़ा गुनाह है और इसकी सख्त से सख्त सज़ा भी है आपसे गुज़ारिश है की इस वाक़्या को पूरा ज़रूर पढ़ें  ये वाक़्या है हाबील और क़ाबील का – हाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindi

हाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindiहाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindi

जब आदम और हव्वा जन्नत से निकाले गए और कई सालों तक अल्लाह की बारगाह में तौबा की और जब अल्लाह तआला ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली तो अल्लाह के हुक्म से वो फिर से दुनिया में मिले और मिलकर रहने लगे औलाद का सिलसिला शुरू हुवा हज़रत हव्वा को जब जब हमल होता, दो जुड़वाँ बच्चे एक बेटा, एक बेटी ही पैदा होती पहले काबील और उनकी बहन अक्लीमा पैदा हुईं, फिर हाबील और उनकी बहन यहूदा पैदा हुईं।

उस वक्त अल्लाह तआला के हुक्म से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने जो शरीअत बनायी थी उसके तहत एक पेट की लड़की से दूसरे पेट के लकडे की शादी कर दिया जाता। चुनांचे इन दोनों भाई बहनों को जो दो पेट से थे, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने ब्याह देने का इरादा किया। लेकिन काबील ने बाप का हुक्म मानने से इनकार कर दिया। झगड़ा शुरू हो गया हज़रत आदम ने इस झगड़े को निपटाने के लिए फैसला दिया कि दोनों कुर्बानी दें जिसकी कुर्बानी कुबूल होगी अक्लीमा उसके निकाह में जाएगी।

उस ज़माने में कुर्बानी देने का तरीका यह था कि जो दो आदमी आपस में झगड़ते थे वो दोनों अपनी-अपनी कुर्बानी पहाड़ पर रखते थे। आसमान से बेधुएं की आग आती थी और हक जिसकी तरफ होता था उसकी कुर्बानी को कुबूल कर लेती थी जब दोनों भाई इस फैसले पर राजी हो गए तो हाबील ने एक मोटा सा मेंढा अपने गल्ले में से जुदा किया और काबील एक टोकरा गेहूं का ले जा कर रख आये। खुदा की कुदरत से एक आग आसमान से आयीकाबील की कुर्बानी पर उसने कोई तवज्जोह न दी, जबकि हाबील की कुर्बानी की तरफ़ गयी और उसे कुबूल कर लिया।

हाबील की कुर्बानी का कुबूल होना ही था कि काबील के मन में कपट और बैर बढ़ गया। उसने हाबील को धमकी दी कि मैं तुझे जान से मार दूंगा। हाबील ने कहा इसमें मेरी गलती क्या है, मैं तो हक पर हूँ| अल्लाह तआला के हुक्म से मेरी ही कुर्बानी कुबूल हुई है, तुम्हारी नहीं। फिर अगर तु मुझ पर हाथ उठायेगा, तो भी मैं कुछ कहने वाला नहीं। फिर पत्थर दिल काबील ने मौका देखकर मज्लूम हाबील के सरं पर, शैतान के बहकावे में आकर, ऐसा पत्थर मारा कि बेचारा भाई शहीद हो गया।

काबील ने यह बहुत बड़ा गुनाह किया था। काबील हाबील की लाश को कुछ दिनों उठाये लिए फिरता था। उसकी समझ में नहीं आता था कि इस लाश का क्या करूं और लोगों की नज़रों से इसे कैसे छिपाऊं। एक दिन अल्लाह का हुक्म ऐसा हुआ कि परेशानहाल काबील की नज़रों के सामने दो कौवे आकर लड़ने लगे, यहां तक कि एक कौवे ने दूसरे को मार डाला। मारने के बाद अपने पंजों से जमीन खोदी और मरे हुए कौवे को उसमें गाड़ कर पंजों से मिट्टी बराबर कर दी।

काबील अपनी आंखों से यह मंजर देख रहा था। सोचने लगा, मैं शायद कौवे से भी गया गुजरा हूँ कि अपने भाई की लाश को कन्धे पर लिए लिए फिरता हूँ और उसे छिपा नहीं पाता हूँ। फिर उसने जमीन खोदी और भाई की लाश को गाड़ दिया। काबील के इस जुर्म का हाल हज़रत आदम को मालूम हुआ। अल्लाह के हुक्म से उन्होंने सज़ा सुनायी कि काबील को भाई का खून बहाने के जुर्म में फांसी दे दी जाए। X काबील डर की वजह से यमन की तरफ भाग गया वहां जाकर उसने एक अल्लाह की इबादत करने के बजाए आग की पूजा शुरू कर दी।

हज़रत आदम हमेशा क़ाबा शरीफ हज के लिए जाया करते थे। एक बार अरफ़ात पहाड़ पर सोये। अल्लाह तआला ने उनकी पीठ से तमाम औलाद को, जो कियामत तक पैदा होगी, उनमें से भलों को सीधी तरफ़ और बुरों का उलटी तरफ़ खड़ा कर दिया। उन सबको हुक्मे इलाही हुआ, ‘क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ? सब ने कहा हां तू ही हमारा रब है। अल्लाह तआला ने उनके इस इकरार पर फरिश्तों की गवाही ,

लिखी और इसे हजरे अस्वद में अमानत रखी। इसीलिए हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायत है कि जो कोई हज करेगा, तोहजरे अस्वद उसकी गवाही देगा। जब हज़रत आदम ने औलाद की कसरत (ज्यादती देखी तो अल्लाह के दरबार में अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह! यह बढती मख्लूक दुनिया में कहां समायेगी। अल्लाह तआला की तरफ से इर्शाद हुआ, यह ठीक है कि दुनिया में नहीं समायेगी, इसीलिए मैं । अपनी कुदरत से कुछ ही को जमीन पर रखूगा, बहुत से तो मरने के बाद जमीन में दफ्न हो जाएंगे, कुछ को बापों की पीठ में रखूँगा और कुछ को माओं के पेट में जगह दूंगा।

हदीस में आया है कि अपनी नस्ल में से एक जवान पर, जो सीधे हाथ पर था, जब हज़रत आदम की नजर पड़ी तो देखा कि वह है तो बहुत खूबसूरत लेकिन रोता चला जा रहा था। हज़रत आदम ने जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछा कि यह कौन है, हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा, एक जवान है, जो तुम्हारी औलाद में से है, नाम दाऊद है, जो पैगम्बर है और अल्लाह के यहां जो बेहद मक्बूल है। उनका रोना सिर्फ चूक की वजह से है, जो उन से होने वाली है।

हज़रत आदम ने फिर पूछा, उनकी उम्र कितनी है, कहा साठ वर्ष । हज़रत आदम ने क़िले की तरफ मुँह करके दुआ की ऐ अल्लाह! मेरी उम्र तूने एक हजार वर्ष मुकर्रर की है। चालीस वर्ष मेरी उम्र में से इसको दे दे। अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ये दुआ कुबूल कर ली। जब हज़रत आदम की उम्र के नौ सौ साठ वर्ष पूरे हो गये और हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज़ करने के लिए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के पास आए तो हज़रत आदम ने फरमाया, अभी तो चालीस साल उम्र के बाकी हैं।

हज़रत इज़राईल अलैहिस्सलाम ने कहा, यह चालीस वर्ष तो अहद के दिन आपने हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को दे दिए थे। हज़रत आदम को यह बात याद नहीं रही थी इसी वजह से उन्होंने इन्कार कर दिया था। यह अलग बात है कि बाद में अल्लाह तआला ने उनकी उम्र पूरी कर दी। दोस्तों ये वाक़्या भी अल्लाह की मर्ज़ी से था जिसका मक़सद दुनिया का दस्तूर बनाना था वरना अल्लाह ने अपनी नबियों बेशुमार मोजज़े और खूबियों से नवाज़ा है वो कभी भुला नहीं करते उन्हें तो आने वाले वक़्त के हालात भी मालूम होते है ।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के इक़रार न करने का मक़सद सिर्फ ये था कि आने वाले वक़्त में दुनिया के लोग लेन-देन और मामलों में गवाहों के साथ लिखा-पढ़ी का भी दस्तूर बन जाए, ताकि कोई अपने लिखे से इनकार न कर सके जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बहुत ज्यादा बीमार हुए, तब उनको जन्नत के मेवों की बड़ी ख्वाहिश हुई। उन्होंने अपनी औलाद से जन्नत के मेवे लाने के लिए कहा भी। वे जब बाहर निकले तो देखा कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम और कई फरिश्ते जन्नत से कफन और खुश्बू साथ में लिए आ रहे हैं।

औलाद ने हज़रत आदम की ख्वाहिश का जिक्र उन से किया हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि हम इसीलिए आए हैं कि उनकी ख्वाहिश पूरी की जाए इसके बाद हज़रत आदम ने हज़रत हव्वा और लड़कों से फरमाया कि तुम सब यहां से जाओ और मुझे अब फरिश्तों पर छोड़ दो चुनांचे उन सबके जाने के बाद मलकुलमौत (मौत के फरिश्ते) रूह कब्ज़ करने लगे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम अल्लाह की याद में लगे रहे, और फरिश्तों हज़रत अलैहिस्सलाम की रूह मुबारक को क़ब्ज़ कर लिया। 

नहलाने और क़फ़न पहनाने के बाद हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के  मुताबिक हज़रत शीस अलैहिस्सलाम ने जनाज़े की नमाज पढ़ी और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को दफ्न कर दिया गया। जनाज़े की नमाज़ की रस्म क्यामत तक के लिए उसी वक्त से तय कर दी गयी।

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मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों ये थी हाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindi उम्मीद करते हैं आपको हमारी ये पोस्ट पसंद आई होगी इसी तरह की और इस्लामी वाक़्यात और मालूमात हासिल करने के लिए हमारी वेबसाइट bahareshariat.com को चेक करे और इस वाक़्या को और लोगों तक शेयर करें – हाबील और क़ाबील का क़िस्सा-Habil And Qabil Story In Hindi

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