हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाकिया-Story Hazrat Idris Alaihissalam

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाकिया-Story Hazrat Idris Alaihissalam

अस्सलामु अलैकुम मेरे मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों आज हम हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाक़िया पढ़ेंगे-हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाकिया-Story Hazrat Idris Alaihissalam

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाकिया-Story Hazrat Idris Alaihissalamहज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाकिया-Story Hazrat Idris Alaihissalam

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम बाबुल में पैदा हुवे इदरीस अलैहिस्सलाम हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पांचवीं पुश्त थे हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की पूरी ज़िन्दगी लोगों को नसीहत करने और सही रास्ता दिखाने में सर्फ़ हुई वो लोगो को गुनाह से दूर और अल्लाह के क़रीब कर दिया करते थे एक अल्लाह के नबी की ज़िनदगी का मक़सद यही होता है वो अपनी पूरी ज़िन्दगी लोगो की भलाई में गुज़ार दिया करते हैं एक वक़्त आया जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम और उनके सभी चाहने वाले बाबुल को छोड़कर मिस्र की तरफ चले गए

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम और उनके चाहने वाले मिस्र में भी लोगो को तालीमात देना शुरू किया और लोगोको गुनाह छोड़कर सही रास्ते पर चलने की दावत दी लोगो को सच्चाई की तरफ बुलाते और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारने की नसीहत करते लोगों को सदक़ा और ज़क़ात देने को कहते ताकि गरीबों और मिस्कीनों की मदद की जा सके हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम वो पहले शख्स है जिन्होंने लोगो को लिखना और पढ़ना सिखाया।

जब काबील की औलाद शैतान के बहकावे में गुमराह हो गयी और कुफ्र और शिर्क में फंस गयी, यहां तक कि निकाह की रस्म अदा करने के बजाए हरामकारी और गंदगी में फंस गयी तो अल्लाह तआला ने हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को नबी बना कर उनके पास भेजा। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम को अल्लाह के दीन का पैगाम पहुँचाना शुरू किया, बहुत से लोगों ने उनकी बात मान ली और इनकार और कुफ्र का रास्ता छोड़कर हिदायत के रास्ते पर चल पड़े और नेकी और सच्चाई के पाबन्द हो गये।

लेकिन जो लोग गुमराही और कुफ्र के अंधेरे में भटकने को ही बेहतर समझते थे उनके दिलों पर हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की नसीहत का कोई असर नहीं हुआ। वो लोग उसी तरह गुमराही में भटकते रहे। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम लोगों से कहते, एक खुदा को मानो और उसी की इबादत करो, उसी के हुक्मों पर चलो। उनकी शरीअत में जितने नमाज़-रोज़े मुकर्रर थे, लोगों से उनका पाबन्द बनने को कहते, जकात देने और अल्लाह की राह में खर्च करने पर लोगों कोको नसीहत करते, पाक-साफ रहने को कहते, हक और इंसाफ पर चलने की हिदायत फरमाते।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम खुद इतनी इबादत करते थे कि हर दिन हज़ार से ज़्यादा बार तस्बीह पढ़ा करते थे। उनके पास फरिश्ते आते-जाते थे, वो उनकी संगत में रहना पसन्द करते थे। उनके भले काम इतने थे कि उनकी बराबरी तमाम मख्लूक की भलाइयां मिलकर भी न कर सकती थीं। यह बात आसमान तक पहुंची, फरिश्तों में कानाफूसियां शुरू हो गयीं। अल्लाह से इजाजत लेकर हज़रत इज़राईल सही सूरत जानने के लिए जमीन पर तशरीफ लाए, हज़रत इज़राईल इंसान की शक्ल में इदरीस अलैहिस्सलाम के साथ में कई दिन तक रहे।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने देखा कि ये आदमी न खाता है, न पीता है, ऐसा तो नहीं कि यह फरिश्ता हो। जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने देखा कि यह तो इज़राईल मौत का फ़रिश्ता है, तब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने फरमाया, मैं मौत का शर्बत पीना चाहता हूँ, मुझे चखाओ। हज़रत इज़राईल ने अल्लाह से इजाजत मांगी और इजाजत लेकर उन्होंने हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की रूह मुबारक को कब्ज कर लिया और उनकी रूहे मुबारक को उनके कल्ब (दिल) में डाली।

फिर हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि मुझको जन्नत और दोजख देखने का शौक़ बहुत ज्यादा है मुझे इनकी सैर कराओ हज़रत इजराईल ने अल्लाह तआला के हुक्म से उनको अपने परों पर बिठाया, फिर दोज़ख़ की सैर करायी, इसके बाद जन्नत की नेमतों की सैर करायी। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जब हूरों, महलों, बागों और नहरों की सैर कर चुके, तो हज़रत इज़राईल ने कहा, ‘अब मेरे साथ जन्नत से बाहर चलिए और इस मकान से बाहरआइये।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम तो कानूने इलाही को अच्छी तरह जानते थे, एक पेड़ का तना पकड़ कर खड़े हो गये, और फरमाया, जब तक पैदा करने वाला जन्नत-दोज़ख़ के इस इम्तिहान से मुझको न निकालेगा, मैं हरगिज़ बाहर न जाऊंगा अल्लाह तआला ने एक फ़रिश्ता इन दोनों के किस्से के फैसले के लिए भेजा। पहले हज़रत इज़राईल ने तमाम हालात कहे, फिर हज़रत इदरीस ने जवाब दिया कि ‘हर जान को मौत

का मज़ा चखना है’ के तकाजे के तौर पर मौत के लज़्ज़त का कड़वा शर्बत चखा और ‘तुम्हीं में से उसमें (यानी दोजख में) जाएंगे’ के मताबिक दोजख में दाखिल हुआ और उस रहीम करीम अल्लाह ही के हुक्म से, जैसा कि उसने कहा है ‘उसमें से (यानी जन्नत से) वो निकलेंगे नहीं,’ मैं जन्नत में दाखिल हुआ, इसलिए अब यहाँ से निकलने का कोई सवाल नहीं सिर्फ इज़राईल के कहने से, बगैर खुदा के हुक्म के, मैं यहाँ से नहीं लौटूंगा।

उसी वक्त गैब से आवाज़ आयी, (बिइज्नी द-ख-ल व बिइज्नी फ-अ-ल हाज़ा) यानी मेरे ही हुक्म से दाखिल हुआ और मेरे ही हुक़्म से यह काम किया इसलिए हक इसी की तरफ है। काब अहबार से रिवायत है कि इस आयत से मुराद कि रफ़अनाहु मकानन अलीया’ (हमने उसे बुलन्द जगह उठाया) हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ही हैं। इसके बाद हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जन्नत से बाहर आये

और छठे आसमान में फरिश्तों के साथ इबादत में लग गए और  जब तक खुदा का इरादा है, वहां मौजूद हैं। हज़रत इदरीस बहुत खूबसूरत थे, गेहुंवां रंग था, मुनासिब क़द था। वह ज्यादातर ख़ामोश रहते चलते वक्त उनकी नज़र क़दमों पर ही रहती। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, तीन नेकियां अहम हैं गुस्से के वक्त नर्मी, तंगी में दान करना, काबू पाने पर माफ करना।

फ़रमाया, अक्लमन्द आदमी वो है जो तीन आदमियों से हल्कापन न करे। एक तो बादशाहों से, दूसरे आलिमों से, तीसरे दोस्तों से। इसलिए कि बादशाहों की गुस्ताखी मीठे ऐश की कड़वाहट जैसी है। आलिमों को हकीर समझने से दीन का नुक्सान है और दोस्तों का हल्कापन बे-मुरव्वती है और नफ़रत करने की चीज़ है। फ़रमाया कि आदमी को चाहिए कि मुसीबत में सब्र करे, तबीयत में जमाव पैदा करे।

इदरीस

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मोहतरम अज़ीज़ दोस्तों ये थी हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की ज़िनदगीकुछ मुख़्तसर सी मालूमात एक पोस्ट में सब कुछ बयान नहीं किया जा सकता इसी लिए हमने उनकी ज़िन्दगी कुछ मालूमात आप तक पहुंचाई उम्मीद करते हैं आपको हमारी ये पोस्ट – हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का वाकिया-Story Hazrat Idris Alaihissalam पसंद आई होगी आपसे गुज़ारिश है इस पोस्ट को और लोगो तक शेयर करें और इसी तरह इस्लामी मालूमात हासिल करने के लिए हमारी वेबसाइट को चेक करें।

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